मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले में शुक्रवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने एक अहम फैसला सुनाया है। विशेष न्यायाधीश सचिन कुमार घोष की अदालत ने एमपी पीएमटी-2009 परीक्षा में फर्जीवाड़ा करने वाले कुल 11 आरोपियों को दोषी करार देते हुए 3-3 साल के कठोर कारावास और 16-16 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई।
यह मामला भोपाल के कोहेफिजा थाने में वर्ष 2012 में दर्ज हुआ था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी, जिसने वर्ष 2015 में दो अभियोग पत्र पेश किए थे।
अपने स्थान पर दूसरों को दिलाई थी परीक्षा सीबीआई के लोक अभियोजक सुशील कुमार पांडे ने बताया 5 जुलाई 2009 को व्यापम द्वारा आयोजित एमपी पीएमटी परीक्षा में 5 छात्र विकास सिंह, कपिल परते, दिलीप चौहान, प्रवीण कुमार और रवि सोलंकी (अब मृतक)ग ने अपने स्थान पर दूसरों को परीक्षा दिलवाई थी। इन अभ्यर्थियों की जगह नागेंद्र कुमार, अवधेश कुमार, रमेश कुमार, प्रीतेश सिंह और शिवकरण साहू परीक्षा में बैठे थे।
इस पूरे फर्जीवाड़े को अंजाम देने में दलाल सत्येंद्र सिंह और ज्ञानेंद्र त्रिपाठी की भूमिका थी। जांच में पता चला कि पैसों के लेन-देन के जरिए फर्जी परीक्षार्थियों को बैठाकर परीक्षा पास करवाई गई। इसके परिणामस्वरूप सभी फर्जी अभ्यर्थियों का चयन एमपी पीएमटी-2009 में हो गया था।
अदालत ने आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए दस्तावेजों, गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर उन्हें दोषी पाया। सजा पाने वालों में अभ्यर्थी, उनके स्थान पर परीक्षा देने वाले 'सॉल्वर' और दलाल सत्येंद्र सिंह शामिल हैं। हालांकि, साक्ष्य के अभाव में दलाल ज्ञानेंद्र त्रिपाठी को कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया।